अतिक्रमणकारियों के सामने आखिर क्यों बौना दिख रहा रूद्रप्रयाग का प्रशासन, कहीं प्रशासन और नगर पालिका की संलिप्तता तो नहीं?

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अतिक्रमणकारियों के सामने आखिर क्यों बौना दिख रहा रूद्रप्रयाग का प्रशासन, कहीं प्रशासन और नगर पालिका की संलिप्तता तो नहीं? 

-कुलदीप राणा आजाद/केदारखण्ड एक्सप्रेस

रूद्रप्रयाग। बीती सांय मुख्यालय में नगर पालिका की जमीन पर अतिक्रमण हटाने गई रूद्रप्रयाग की प्रशासन की टीम अतिक्रमण हटाने को लेकर इतनी बेबस और लाचार दिख रही थी कि मानों स्वयं प्रशासन ने इस अतिक्रमण के आदेश दिये हो, वही नगर पालिका की भूमिका भी ऐसी लग रही थी कि उन्होंने यह जमीन अतिक्रमणकारिकाओं को दान दे दी हो। बडी बात यह है कि जिस भवन का यहाँ पर निर्माण कार्य चल रहा है उसका अभी तक नक्शा तक नहीं है। बिना नक्शे का न केवल भवन निर्माण हो रहा बल्कि अतिक्रमण भी दिन दहाड़े किया जा रहा। 

नगर पालिका पर सवाल उठाना इसलिए भी लाजमी है कि नगर पालिका का शौचालय तोडकर वहां निजी भवन की सीढियों का निर्माण हो जाने के बाद भी पालिका ने कोई कार्यवाही नहीं की, वह भी तब जबकि पालिका के संज्ञान में पूरा मामला है। खुले आम दिन दहाड़े यह कार्य हो रहा है बावजूद नगर पालिका केवल अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर रही है जबकि पटवारी और रूद्रप्रयाग प्रशासन की भूमिका भी संदेह के घेरे में नजर आ रही है। 

सोमवार को केदाखण्ड एक्सप्रेस न्यूज़ ने रूद्रप्रयाग मुख्यालय में मस्जिद के नजदीक नगर पालिका की जमीन पर अतिक्रमण को लेकर प्रमुखता से रिपोर्ट दिखाई थी। केदारखण्ड एक्सप्रेस ने इस बात को प्रमुखता से दिखाया था कि कैसे रूद्रप्रयाग प्रशासन और नगर पालिका के नाक के नीचे धडल्ले से अतिक्रमण हो रहा है लेकिन प्रशासन और पालिका चैंन की बंशी बजा रहे, हालांकि रिपोर्ट देखने बाद सांय करीब साढे सात बजे औपचारिकता पूरी करने के लिए मौके पर पुलिस बल के साथ नगर पालिका, राजस्व उपनिरीक्षक, नायब तहसील और उपजिलाधिकारी  मौके पर पहुँचे लेकिन अतिक्रमणकारियों के सामने पालिका और तहसील प्रशासन की विवशता देखने लायक थी। अतिक्रमण को ध्वस्त करने की बजाय प्रशासन अतिक्रमणकारियों से याचना करता हुआ नजर आ रहा था। 

नगर पालिका परिषद रुद्रप्रयाग व तहसील प्रशासन कि इस विवशता से कई सवाल खडे़ होते हैं। सबसे पहले यह कि  आखिर प्रशासन के सामने कौन सी ऐसी मजबूरी है जो अतिक्रमण हटाने के लिए अतिक्रमणकारियों के सामने याचना कर रहे हैं? पुलिस बल साथ में लाने के बावजूद भी क्यों ध्वस्तीकरण की कार्यवाही नहीं की गई? यह जानते हुए भी कि जिस जगह पर अतिक्रमण हुआ है वहां 50 से 60 साल पुराना नगरपालिका का सार्वजनिक शौचालय था बावजूद न तो नगर पालिका और न प्रशासन यहां पर अतिक्रमणकारियों को निर्माण करने से रोका गया? इस अतिक्रमण पर नगर पालिका ने आंखें क्यों मूंद ली? क्षेत्रीय पटवारी आखिर कहां सोया हुआ था? जिन लोगों ने शौचालय को तोड़ा था उन लोगों की रिपोर्ट पुलिस में जाने के बावजूद भी पूरे मामले में आखिर क्यों समझौता किया गया और क्यों सरकारी संपत्ति को क्षति पहुंचाने वालों के खिलाफ कार्यवाही नहीं हुई? 

यह तमाम ऐसे सवाल हैं जिन सवालों का जवाब नगर पालिका और प्रशासन की भूमिका को कटघरे में खड़ा कर रही है। अतिक्रमण को लेकर जिस तरह से प्रशासन और नगर पालिका का रवैया बिल्कुल उदासीन दिख रहा है उससे साफ जाहिर होता है कि कहीं ना कहीं प्रशासन और नगर पालिका की इसमें पूरी तरह से संलिप्तता है। देखना होगा यह विवशता इसी तरह कायम रहती है या फिर अतिक्रमण हटाने को लेकर नगर पालिका और प्रशासन संजिदा दिखता है।

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