भक्ति, ज्ञान, त्याग और वैराग्य का समिश्रण ही श्रीमद्भागवत है : आचार्य आनंद वर्धन पुरोहित
भक्ति, ज्ञान, त्याग और वैराग्य का समिश्रण ही श्रीमद्भागवत है : आचार्य आनंद वर्धन पुरोहित
– अनसूया प्रसाद मलासी –
अगस्त्यमुनि। निकटवर्ती रुमसी गाँव में श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ करते हुए प्रसिद्ध कथावाचक आचार्य आनंद वर्धन पुरोहित ने कहा कि भक्ति, ज्ञान, त्याग और वैराग्य का समिश्रण ही श्रीमद्भागवत है। महर्षि वेदव्यास ने 17 पुराण लिखे, मगर मन को संतुष्टि नहीं मिली। तब नारद मुनि जी के उपदेश देने के बाद उन्होंने 18वें पुराण की रचना की, जिसको श्रीमद्भागवत कहते हैं।
अष्टादशपुराणेषु व्यासस्य वचनं द्वयं।
परोपकारः पुण्याय पापाय परिपीडनम्।।
(इसमें उन्होंने 2 विशिष्ट बातें कही हैं। परोपकार को सबसे बड़ा पुण्य और दूसरे को पीडा़ देना सबसे बड़ा पाप कहा है)
उत्तराखंड राज्य चिन्हित आंदोलनकारी, जिला पंचायत के पूर्व सदस्य और उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय उपाध्यक्ष स्वर्गीय अवतार सिंह राणा और उनके पुत्र बिमल की पुण्यस्मृति में आयोजित हो रहे श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के शुभारंभ पर उन्होंने यह बात कही। व्यास पं. आनंद वर्धन पुरोहित के आगमन पर ग्रामीणों ने जोरदार स्वागत किया। गाजे-बाजे के साथ सैकड़ों नर-नारियों ने पुष्प वर्षा कर उनकी जय-जयकार की।
कथा व्यास पंडित आनंद वर्धन पुरोहित ने कहा कि मनुष्य जीवन भर सांसारिक मोह-माया में फंसा रहता है। बच्चे का प्रेम माता पिता के प्रति, युवावस्था में पत्नी के प्रति, बच्चों के प्रति और बुढ़ापे में तीसरी पीढ़ी के प्रति अथाह प्रेम करता है लेकिन भगवान के प्रति प्रेम करने का उसके पास समय भी नहीं होता। अंतिम समय में वह अपनी इस गलती की भगवान से क्षमा मांगता है।
मंगलाचरण …
सच्चिदानंद रूपायः विश्वोत्यत्यादिहेतवे,
तापत्रायविनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नमः।। से श्रीमद्भागवत कथा का शुभारंभ किया।
पांडवों के पोते राजा परीक्षित द्वापर युग के अंतिम राजा और कलियुग के प्रथम राजा हुए। तक्षक नाग की कथा, परीक्षित संवाद और शुकदेव की कथा सुनाई। दुंदली, धुंदकारी और गोकर्ण कथा से श्रोताओं को परिवार में एक-दूसरे के प्रति कर्तव्य और समर्पण की भावना पैदा करने व सनातन धर्म के प्रति जागरूक किया।
यजमान संजय सिंह राणा, हर्षवर्धन राणा, राजवर्धन राणा, जयवर्धन राणा, दर्शनी देवी व राणा परिवार ने आचार्यगणों का सम्मान किया।
श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह के आचार्यगण पं. सतेंद्र प्रसाद भट्ट, पं. शशि प्रसाद भट्ट, पं. जयवर्धन पुरोहित, पं. देवी प्रसाद पुरोहित व पं शिव प्रसाद भट्ट हैं।
रुमसी व आसपास के गाँवों के लोग बड़ी संख्या में श्रीमद्भागवत कथा सुनने के लिए पहुँचे।।