बडे़ भाई छोटे भाई के रिश्ते ने मचाई सियासत में हलचल

0



बडे़ भाई छोटे भाई के रिश्ते ने मचाई सियासत में हलचल

हरीश रावत की सरकार को गिराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले और 2016 में कांग्रेस से बगावत करने वाले कद्दावर नेता हरक सिंह रावत एन 2022 चुनावों से पहले फिर कांग्रेस के दिग्गज नेता हरीश रावत से रिश्तेदारी कर रहे हैं, जिसने फिर उत्तराखण्ड की सियासत में भूचाल मचा दिया है। पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अब बड़े भाई छोटे भाई बन गए। चुनाव से ठीक पहले पालाबदल के खेल को लेकर बड़े भाई ने तल्ख टिप्पणी कर वर्ष 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने वालों को अपराधी पापी जैसे भारी भरकम विशेषणों से नवाजा।


हफ्ताभर पहले तक एक-दूसरे को फूटी आंख न सुहा रहे पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत और कैबिनेट मंत्री हरक सिंह रावत अब बड़े भाई, छोटे भाई बन गए हैं। चुनाव से ठीक पहले पालाबदल के खेल को लेकर बड़े भाई ने तल्ख टिप्पणी कर वर्ष 2016 में कांग्रेस छोड़ भाजपा में जाने वालों को अपराधी, पापी जैसे भारी भरकम विशेषणों से नवाजा। छोटे भाई कैसे चुप रहते, नतीजतन हरक ने हरीश रावत पर उन्हें फंसाने के लिए षड्यंत्र रचने तक का आरोप लगा डाला। अचानक दो दिन पहले हरक का हृदय परिवर्तन हो गया और उन्होंने हरीश रावत को बड़ा भाई करार देकर उनके शब्दों को खुद के लिए आशीर्वाद बता दिया। सियासी बिसात पर हरक की तरफ से चली जा रही इस ढाई घर की चाल से भाजपा के साथ ही कांग्रेस में भी हलचल नजर आ रही है। मतलब, अगले कुछ दिनों में शह-मात का खेल दिलचस्प मोड़ लेगा।


मुझे हटाया नहीं गया, मैं तो खुद हटा

उत्तराखंड और पंजाब, दोनों राज्यों में अगले साल विधानसभा चुनाव हैं। कांग्रेस महासचिव हरीश रावत उत्तराखंड में पार्टी की चुनाव अभियान समिति के मुखिया हैं, तो पंजाब में उनकी भूमिका प्रभारी की थी। इस दोहरे दायित्व ने रावत के कदमों को बांध दिया, क्योंकि वह उत्तराखंड को पूरा वक्त नहीं दे पा रहे थे। दो महीने से पंजाब के दायित्व से मुक्ति पाने को छटपटा रहे रावत की मुराद आखिरकार हाल में कांग्रेस हाईकमान ने पूरी कर दी। उधर रावत पंजाब से फारिग हुए, इधर इंटरनेट मीडिया में जोर-शोर से एक दिलचस्प मुहिम शुरू हो गई। इसमें कहा गया कि हरीश रावत को पंजाब कांग्रेस के गतिरोध को न सुलझा पाने के कारण प्रभारी पद से हटा दिया गया। मामला इतना ज्यादा बढ़ गया कि रावत को 20 अक्टूबर का वह पत्र मीडिया को जारी करना पड़ा, जिसमें उन्होंने खुद को इस दायित्व से मुक्त करने की इच्छा जताई थी।


जैसा नाम, वैसा काम, फिर भी मुसीबत क्यों

जैसा उनका नाम है, बिल्कुल उसी के मुताबिक वह सकारात्मक भी हैं, मगर अजब संयोग है कि अकसर पार्टी के विधायक खरीखोटी सुनाने को उन्हें ही चुनते हैं। डा धनसिंह रावत, धामी कैबिनेट के सबसे एक्टिव सदस्यों में से एक, उच्च शिक्षा के साथ ही सहकारिता और आपदा प्रबंधन का जिम्मा संभाल रहे हैं। चंद हफ्ते पहले देहरादून में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में विधायक उमेश शर्मा काऊ अचानक अपनी ही पार्टी के कार्यकत्र्ताओं पर बरस पड़े, बगैर यह देखे कि कैबिनेट मंत्री धन सिंह रावत वहीं मौजूद हैं। अब कुमाऊं मंडल में धनसिंह रावत मुख्यमंत्री धामी के साथ राहत कार्यों का जायजा लेने पहुंचे तो विधायक पूरण सिंह फत्र्याल कैमरों के सामने ही अपनी सरकार के मंत्रियों को कठघरे में खड़ा करने से नहीं चूके। विधायक का कहना था कि मंत्री सभी आपदा प्रभावित क्षेत्रों में क्यों नहीं पहुंच रहे हैं। मंत्रीजी भी खामोश, चुनाव जो सिर पर खड़े हैं।


प्रियंका का फार्मूला और उत्तराखंड कांग्रेस की टेंशन

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को संजीवनी देने के लिए प्रियंका गांधी ने 40 फीसद टिकट महिलाओं को देने का एलान किया, लेकिन इससे पड़ोसी उत्तराखंड में कांग्रेस के नेताओं की सांसें अटक गई। दरअसल, उत्तर प्रदेश के मुकाबले उत्तराखंड में कांग्रेस बेहतर स्थिति में है। अब तक हुए चार विधानसभा चुनाव में दो बार सत्ता कांग्रेस के हाथ रही है। हर बार सत्ता के बदलाव का मिथक है, तो कांग्रेस को भरोसा है कि 2022 में बाजी उसके हाथ रहेगी। अब प्रियंका के फार्मूले ने इस बात की संभावना बढ़ा दी है कि कांग्रेस उत्तराखंड में भी इसे अमल में ला सकती है। अगर ऐसा हुआ तो सत्ता में वापसी के मंसूबे पाल रही कांग्रेस की अब तक की पूरी रणनीति गड़बड़ा सकती है। यही वजह है कि उत्तराखंड कांग्रेस के नेता इस सवाल से कन्नी काट रहे हैं कि क्या यहां भी 40 फीसद टिकट महिलाओं को दिए जाएंगे।

सभार : दैनिक जागरण 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Share

You cannot copy content of this page