रूद्रप्रयाग वन विभाग की तिजोरी से चंदन की चोरी, कुम्भकर्णीय नींद में वन विभाग

कुलदीप राणा आजाद/रूद्रप्रयाग

रूद्रप्रयाग। वनों के संरक्षण संवर्धन और रखरखाव के लिए जिस वन महकमें को जिम्मेदारी दी गई हो और हर वर्ष भारत सरकार से लेकर राज्य सरकारें करोड़ों रुपए इस विभाग पर खर्च करती हो, वह विभाग अपने ही कैंप कार्यालय की चार दिवारी के अंदर ही बेश कीमती चंदन के पेड़ों को नहीं बचा पाई है तो इससे बडी शर्मनाक बात, लापरवाही व वह अकर्मण्यता क्या हो सकती है।

मामला रुद्रप्रयाग वन विभाग कैंप कार्यालय का है जहां वन अधिकारी के कैंप कार्यालय के बाहर से सालों से खड़े बेस कीमती चंदन के पेड़ पिछली रविवार की रात्रि को चोरों द्वारा काटकर चोरी कर गये। हमारे विश्वसनीय सूत्रों के अनुसार इन पेड़ों की कीमत 80 लाख बताई जा रही है। पूरे मामले को एक सप्ताह का समय हो गया है किन्तु वन विभाग लिपापोती में जुटा है।

विभाग द्वारा मामले को दबाने का किया भरसक प्रयास

सूत्रों की माने चोरों द्वारा चंदन के पेड़ों को जमीन की सतह से काटा गया और वह भी एक दो नहीं बल्कि पूरे 8 पेड़ काटे गये। लेकिन वन विभाग पूरे मामले को दबाने के भरसक प्रयास में जुट गया। बताया जा रहा है कि विभाग द्वारा काटे गये सभी पेड़ों के सबूत मिटाये गये। हालांकि जब रात को चोरी हुई तो वन विभाग चैंद की नींद सो रहा था किन्तु सुबह जब नींद से जागे तो कैम्प कार्यालय के कैम्पस से चंदन के पेड़ गायब थे जिससे वन विभाग के हाथ पांव फूल गये।

पूरे मामले में जब हमने डीएफओ अभिमन्यु से इस बाबत जानकारी लेनी चाही तो डीएफओ द्वारा पूरे दो घंटे तक मीडिया को गुमराह किया गया। इस कडवी सच्चाई से शायद वन विभाग सामना ही नही करना चाहता था।

हमारे टीम जब घटनास्थल पर पहुंची तो उन्होंने कैंप कार्यालय का गेट भी बंद कर दिया ताकि इस पूरे मामले को रफा दफा किया जा सके और मीडिया के कैमरे की नजरों से सबूत भी दूर रहे।

उधर हमारे एक सहयोगी ने जब टेलीफोन पर डीएफओ अभिमन्यु से बात की तो उन्होंने बताया की इस मामले में बड़े गिरोह का हाथ है, इस लिए इस मामले की जानकारी मीडिया को नहीं दी जा सकती है। उन्होंने कहा विभाग इसमें जांच कर रहा है।

हालांकि बिना वन विभाग के अधिकारियों की संलिप्त से वन विभाग के अधिकारियों के मुंह के सामने बेशकीमती चंदन के पेड़ों की चोरी नहीं हो सकती है, यह भी जांच का विषय है किन्तु जांच कौन करेगा यह भी महत्वपूर्ण है।

वाकई अगर वन विभाग इस पूरे मामले से बेखबर है तो क्या वह उस गिरोह या चोरों तक पहुंच सकता है। सबसे अहम सवाल यह है कि जब वन विभाग के कैंप कार्यालय में ही इतने बेशकीमती पेड़ों की चोरी हो रही है तो फिर दूरस्थ जंगल के क्षेत्र में किस तरह से पेड़ों को बचाया जा रहा होगा, इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है?

वन विभाग की इस नाकामी पर सवाल बहुत सारे और गंभीर खड़े होते हैं किंतु सबसे बड़ा सवाल यह भी है कि जब डीएफओ के मुंह के सामने इस तरह से चोरी हो रही है तो फिर डीएफओ की कार्यप्रणाली भी सवालों की घेरे में आती है। वनों के संरक्षण व संवर्धन हेतु वन अधिनियम की गंभीर धारायें केवल आम आदमी के लिए हैं या ऐसे लापरवाह अधिकारियों पर भी कोई कानूनी कार्रवाई की जाएगी जो अपने तिजोरी को ही नहीं बचा पाये।

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