धरासू :कभी यह बाज़ार आँखों का तारा था
धरासू :कभी यह बाज़ार आँखों का तारा था
केदारखण्ड एक्सप्रेस न्यूज़
–शीशपाल गुसाईं
उत्तरकाशी। अंग्रेज विल्सन जब हर्षिल से मसूरी या रायवाला की यात्रा करता था। तब उसका गंगा के किनारे धरासू ठहरने का प्रमुख अड्डा होता था। उसने यहाँ गेस्ट हाउस का निर्माण किया। जो आज फॉरेस्ट के पास है। बिल्सन के ठहरने से ही धरासू चमकदार हुआ। धरासू में छेड़ा रोह गाड़ भण्डासूंय से आती थी। जो भागरथी नदी में मिलती थी। यहाँ लोग माछा मारते थे। और गोते लगाते थे।समय के साथ गाड़ गदेरा भी लुप्तप्रायः हो गई है। बिल्सन घोड़े में यहाँ से आता जाता था। बहुत बाद आज़ादी के दरमियान टिहरी से जो गाड़ी आती थी वह गेट सिस्टम से आती थीं। काफी समय तक धरासू तक ही
गाड़ी आई। बाड़ाहाट ( उत्तरकाशी ) तक लोग पैदल जी जाते थे। फिर बाद में बाड़ाहाट तक गाड़िया चली। धरासू गेट सिस्टम का स्टैंड होने पर काफी लोकप्रिय नाम था। धीरे धीरे यह सौदे पत्ते का केंद्र विकसित होने लगा। यहाँ घराट थे। क्योंकि गाड़ में पाणी खूब होता था। दूर दूर गमरी, दिचली, बिष्ट, भंडारसूय पट्टियों घटवाड़ी पिसाने लोग आते थे। 70, 80, 90 को दशक में यहाँ आधुनिक सा बाजार बन गया। इसके ढाई किलोमीटर दूर धरासू बैंड से पहले से यमुनोत्री , भंडारसूयरवांई के लिए सड़क तो थीं ही , वह चौड़ी होने लगी तो धरासू बैंड बाजार विकसित हो गया। जैसे कोई गाड़ी उत्तरकाशी से बड़कोट, पुरोला, ब्रह्मखाल तक जाती थीं
वह बैंड से धरासू बाजार आती थी फिर सवारियां लेकिन
खाना, चाय, नास्ता करके पुनः बैंड लौटती थीं। धरासू में श्री राधे लाल की दुकान बड़ी फेमस थीं। गंगा से नो मंजिला
भवन बोलते थे उसे। यह दुकान और बाजार 2000 तक रहे।
राधे लाल नहीं रहे। उनका बेटा अब हरिद्वार में कारोबार
करता है। राधे लाल और काफी पंजाबी यहाँ लोकल भाषा
में बात करते थे। सूर्याली लगाते थे। छेड़ा रोह गाड़ के माछे
भी बड़े टेस्टी होते थे। होटलों में कढ़ाई में मछली भट्टी के ऊपर रखी रहती थीं। उसकी तरी लाल मिर्च की होती थी। जो सड़क से दिखकर मुंह मचल देती थीं। धरासू में डोभाल गांव चम्बा के श्री रणवीर सिंह गुसाईं के घर की याद मुझे आज तक है। जब मैंने पहली बार 90 मे बड़कोट नन्दगांव की छोटे
में यात्रा की होगी।
पहली बार धरासू , धरासू बैंड की वजह से खत्म हुआ।
तो दूसरी बार 5 दिन पहले अचानक आये भूस्खलन से।
धरासू थाना भी यहां बहुत फेमस था। 2013 की बाढ़ आई
और थाना 6 किलोमीटर दूर चिन्यालीसौड़ में शिफ्ट कर दिया
गया। नाम वही है। 2013 की बाढ़ ने नदी के किनारे सड़क
और सड़क के किनारे थाना था, को पानी ने अपनी चपेट में ले लिया था। इसे मजबूरन शिफ्ट करना पड़ा। इस थाने का भी रोचक इतिहास है। 1978 की बाढ़ जो 2013 से भी बडी थीं को प्रभावित किया। पहले थाना और ऊपर था। बाद में नीचे आया। फिर अब चिन्यालीसौड़ में है। तत्कालीन उत्तर प्रदेश ने 24 फरवरी 1960 को जब टिहरी से उत्तरकाशी अलग जिला बनाया था, तब इस थाने की अलग महत्व थीं। यह विशिष्ट इसलिए था कि पहले तार थाने में आते थे कि फलां मंत्री लखनऊ से उत्तरकाशी या गंगोत्री आएंगे। गंगोत्री तक यात्रियों को यही थाना रास्ता बताता था। पहले अपराध बहुत कम होते थे। गांव में एक दूसरे से लोग भाई चारे से रहते थे। गांव के स्याने किसी भी झगड़ा का फैसला कर देते थे। इसलिए स्याने की व्यवस्था होती थी। थाना तक मामला आता ही नहीं था। गांव – गांव में पटवारी व्यवस्था रही। लखनऊ ने धरासू थाना को अपनी सुविधा, या सूचना के आदान प्रदान के बनाया था।
धरासू बाजार से उस पार उत्तर प्रदेश ने अपना बिजली घर भी बनाया था। इसकी सुरंगे 70 के दशक में बनी। मनेरी से पानी
पम्प किया गया। धरासू में बिजली बनी। और इसके कर्मचारियों के लिये चिन्यालीसौड़ में शक्तिपुरम नाम से कालोनी बनी। एक जमाने मे यह कॉलोनी यमुना कालोनी देहरादून को भी मात देती थीं। यमुना पर डैम के इंजीनियर यमुना कालोनी में रहते हैं। 2000 में अलग राज्य जब बना तो
इस कालोनी के बड़े बड़े इंजीनियर के आवासो को मंत्री, आला अफसरोंके आवासो में तब्दील कर दिया गया। इसी तरह शक्तिपुरम कालोनी की वजह से चिन्यालीसौड़, धरासू स्वरूप में बड़े हुए। उस जमाने जीप इन्ही इंजीनियर के पास होती थी। उत्तर काशी से आगे मनेरी में भी सिंचाई विभाग की कालोनी थीं। उत्तर प्रदेश की बिजली के लिए उस जमाने उत्तर काशी के मनेरी, धरासू का बड़ा योगदान था। आज भी है। 2004 में सेकेंड फेज भी बना है। जब यूपी कमाता था तब कुछ खर्च भी करता था। इसलिए कुछ पैसा इन मार्किट में आता था। धरासू में समतल जगह नहीं थीं।इसलिए 6 किलोमीटर दूर चिन्याली गांव में समतल जमीन से वहां कालोनी डेवलप हुई। 1994 में हवाई पट्टी बनी।
2 तारीख को 2 बजे के करीब धरासू के ऊपर की पहाड़ी
से भूस्खलन हुआ।यह सूचना धरासू के समीप नेरी गांव के पत्रकार श्री हरीश थपलियाल ने प्रशासन को दी। भूस्खलन जारी है। धरासू को प्रकृति ने इस बार नहीं छोड़ा। जिससे गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग बंद हो गया है। गाड़िया बड़ेथी से बनचौरा – ब्रह्मखाल से 70 किलोमीटर अतिरिक्त घूम कर धरासू बैंड पहुँच रही है। सीमांत जिले उत्तरकाशी मुख्यालय जाने के लिए जोखिम भरे रास्तों से जाना पड़ रहा है। वैसे लॉक डाऊन में यात्रा बन्द है लेकिन आवश्यक खाध सामग्री ले जाने के कठिनाई हो रही है ऐसा कुछ लोगों ने महसूस किया है।
ऑल वेदर रोड़ के इस पैच का कार्य बीआरओ के पास है।
आज पांच दिन में केवल हुयूम पाइप लाई है। इनको गंगा
के किनारे डाल कर इनके ऊपर गाड़ी पास की जाएगी।
सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण उत्तर काशी के प्रति बीआरओ की
लापरवाही नजर आती दिख रही है। वह धरासू में पाइप दूसरे दिन भी तो डाल सकती थीं ? आज महत्वपूर्ण रास्ता खुल जाता। हमको यह भूलना चाहिए कि, हर्षिल में आर्मी की एक यूनिट तैनात है। जिसमे करीब 800 जवान हमारी चीन की तरफ से सीमा नेलांग में तैनात हैं।
आईटीबीपी के करीब 1500 जवान मातली , महीडाण्डा में तैनात है। महीडांडा में ट्रेनिंग सेंटर है। देश में नक्सल प्रभावित एरिया के लिए यहाँ जवान तैयार किये जाते हैं। ट्रेंनिग दी जाती है। आईटीबीपी की 12 वीं वाहनी मातली में है। यहाँ के जवान चीन के बॉर्डर पर आर्मी से आगे तैनात रहते हैं। यानी 3000 हजार लोग चीन से रक्षा के लिए देश की ओर से उत्तरकाशी जिले में तैनात हैं। आर्मी के यहाँ कर्नल बड़े अफसर बैठते हैं। तो आईटीबीपी के 2 कमाण्डेन्ट/ डीआईजी होते हैं।
यह सही है कि लॉकडाऊन का पालन होना चाहिए। उत्तरकाशी भी कर रहा है। डॉक्टर, नर्स, पुलिस, आपदा, प्रशासन जम कर काम कर रहा है। लेकिन राष्ट्रीय राज मार्ग इतने दिनों तक बंद नहीं रखा जाना चाहिए। बद्रीनाथ राष्ट्रीय राज मार्ग कई बार भूस्खलन से बंद हुआ था। लेकिन नीचे खाई थीं। बड़ी नदी अलकनंदा का तेज बहाव रहता है। मलबा साफ करना ही ऑप्शन था। यहां धरासू में ऑप्शन पहले दिन से है। नदी का जो एक किलोमीटर का चौड़ा फाट है वह आधा सूखा है। उसमें तुंरत हुयूम पाइप डाले जा सकते हैं। बीआरओ रक्षा मंत्री के नियंत्रण में है। लेकिन उसे फण्ड एनएचएआई देता है। इनकी स्वयं की यूनिट तेखला ,भेरोघाटी में है। जो फुर्तीली नहीं है। जवानों के लिये खाद्य राशन का मामला है।
धरासू का नाम भारत वर्ष के मानचित्र पर अब भी है। विलसन ने जिन जगहों को विकसित किया। उन्हें मानचित्र पर जगह दी गई। यह गूगल में भी है। उत्तरकाशी , गंगोत्री का यह प्रवेश द्वार रहा है। हालांकि अब नगुण, पीपलमंडी है। जब जब भारत के मानचित्र में नई जगह जुड़ी, उसमें धरासू ने कभी दम नहीं तोड़ा।
धरासू इस मार्ग का आगराखाल था। यहाँ गाडियां रुकती थीं।
यहाँ होटलों में हलवा भी बनता था। और पहाड़ी दाल भी।
और कहीं कहीं लाल चावल भी। लोग पहाड़ी भोजन कर,
गाढ़ा दूध की चाय, पकौड़ी खा कर अपने अपने गाँव के लिए आगे बढ़ते थे।