उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में बसंत के दिनों में वैसे तो कई तरह के रंग-बिरंगे फूल अपनी मदमस्त करने वाली सुगंध से सभी को अपनी ओर खींचने का काम करते हैं, फरवरी-मार्च में हिमालय के पहाड़ी क्षेत्रों में एक विशेष प्रकार का पीले रंग का फूल खिलता है, जिसके खिलने से पहाड़ों में बसंत का आगाज माना जाता है. इस फूल को ‘प्यूली’ या ‘फ्योंली’ के नाम से जाना जाता है, यह फूल दिखने में छोटा और पीले रंग का होता है. प्यूली के फूल से सभी की भावनाएं जुड़ी हैं, यह फूल हिमालय की सुंदर और हसीन वादियों में खिलता है, इस फूल को एक सुंदर राजकुमारी का दूसरा जन्म भी मानते हैं, गढ़वाली गीत ‘फ्योंली ज्वान ह्वेगी’ जैसे तमाम गीतों में भी इस फूल की सुंदरता की तुलना स्त्री के यौवन की सुंदरता को व्यक्त करने ले लिए की गई है, यह फूल जिंदगी में सकारात्मकता का संदेश देता है, फ्यूली के नाम के पीछे कई कहानियां सुनने को मिलती हैं, कहा जाता है कि देवगढ़ के राजा की इकलौती पुत्री का नाम फ्योंली था, जो अत्यधिक सुंदर व गुणवान थी, लेकिन गंभीर बीमारी के चलते उसकी असामयिक मौत हो गई।राजमहल के जिस कोने पर राजकुमारी की याद में राजा द्वारा स्मारक बनाया गया था, उस स्थान पर पीले रंग का यह फूल खिला, जिसका नाम फ्योंली रखा गया, युवा कवयित्री ममता राज शाह कहती हैं कि पहाड़ों में फ्योंली का खिलना बसंत के आने की सूचना देता है, तो कवियों के लिए उनकी रचना का विषय भी देता है, इसकी सुन्दरता से कवि अपनी कविता की रचना करते हैं।

रिपोर्ट सोनिया मिश्रा

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