पर्वतीय जिलों की सीटों में कटौती किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं : कमलेश उनियाल

पर्वतीय जिलों की सीटों में कटौती किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं, कमलेश उनियाल का परिसीमन आयोग एक पत्र के माध्यम से को स्पष्ट संदेश

रुद्रप्रयाग। उत्तराखंड के सामाजिक कार्यकर्ता एवं प्रदेश सह मीडिया प्रभारी (नि०) कमलेश उनियाल ने 2026 परिसीमन को लेकर परिसीमन आयोग को कड़ा और साफ संदेश दिया है। उन्होंने चेतावनी दी कि यदि पहाड़ी जिलों की विधानसभा और लोकसभा सीटों में कटौती हुई, तो यह पूरे उत्तराखंड के साथ अन्याय होगा और पहाड़ी समाज किसी भी कीमत पर इसे स्वीकार नहीं करेगा।

कमलेश उनियाल ने अपने पत्र में कहा कि—

पहाड़ों की वास्तविकता को अनदेखा कर जनसंख्या के आधार पर सीटें कम करने का कोई भी प्रयास सीधे-सीधे पहाड़ को कमजोर करने जैसा होगा।

उन्होंने कहा कि–

▸ उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों का क्षेत्रफल बेहद बड़ा है,
▸ गाँव बिखरे हुए और एक-दूसरे से कई किलोमीटर दूर हैं,
▸ यातायात और संचार आज भी संघर्षपूर्ण स्थिति में है,
▸ पलायन की मार से जनसंख्या घट रही है,
▸ और चीन-नेपाल सीमा से सटे जिलों में सुरक्षा की चुनौतियाँ बढ़ रही हैं।

कमलेश उनियाल ने कहा कि जब मेट्रो शहरों और मैदानों की सुविधाएँ पहाड़ों में नहीं हैं तो सिर्फ जनसंख्या आधार पर सीटों में कटौती करना भौगोलिक अन्याय है।

उन्होंने स्पष्ट शब्दों में कहा—

“पर्वतीय क्षेत्रों की सीटें कम करना, सिर्फ प्रतिनिधित्व कम करना नहीं— यह पहाड़ की आवाज, पहाड़ की सुरक्षा और पहाड़ के विकास को कम करने की कोशिश है। इसे किसी भी हालत में सहन नहीं किया जाएगा।”

उन्होंने यह भी कहा कि माननीय प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी का “मॉडल पर्वतीय राज्य” का विज़न तभी सफल होगा जब पर्वतीय जिलों को पर्याप्त राजनीतिक शक्ति मिले। सीटें कम होने से—

▸ विकास योजनाएँ धीमी पड़ेंगी,
▸ बजट आवंटन प्रभावित होगा,
▸ और सीमांत जिलों की सुरक्षा तैयारी भी कमजोर पड़ेगी।

कमलेश उनियाल ने परिसीमन आयोग से दो टूक मांग की—

  1. सीट निर्धारण में क्षेत्रफल, भौगोलिक कठिनाई और सीमांत स्थिति को मुख्य आधार बनाया जाए।
  2. विधानसभा और लोकसभा सीटों में किसी भी प्रकार की कटौती न की जाए।

उन्होंने कहा—

“यह लड़ाई किसी दल या व्यक्ति की नहीं— यह पूरे पहाड़ की अस्मिता, सम्मान और भविष्य की लड़ाई है।”

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