मलासी पब्लिक सर्विस कमीशन” के जनक थे स्व. उमेश चंद्र मलासी ‘शास्त्री जी’
सादगी पसंद जीवन था, परिवार के लिए कुछ नहीं जोड़ा
-अनसूया प्रसाद मलासी
आज जहाँ देश में भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद का बोलबाला है, तो ‘मलासी पब्लिक सर्विस कमीशन’ के रूप में विख्यात उप शिक्षा निदेशक (पौडी़) के पद पर आसीन रहे स्वर्गीय उमेश चंद्र मलासी ‘शास्त्री जी’ का नाम बड़े आदर और सम्मान के साथ लिया जाता है।
उमेश चंद्र मलासी का जन्म 2 मार्च 1925 को अगस्त्यमुनि में हुआ था। उनके पिता जगतराम मलासी अगस्त्यमुनि के गणमान्य व्यक्ति थे और अपना व्यवसाय करते थे। संस्कृत में मध्यमा और शास्त्री की परीक्षा प्राइवेट उत्तीर्ण कर वे अगस्त्यमुनि हाई स्कूल में संस्कृत के अध्यापक बन गए। 1962 में विद्यालय का उच्चीकरण इंटरमीडिएट के रूप में हो गया और वे वहां प्रभारी प्रधानाचार्य बन गये। उन्होंने बीए और एलटी परीक्षा पास की। उत्तर प्रदेश सरकार ने विद्यालय का प्रांतीयकरण कर दिया तो श्री मलासी यहां स्थाई प्रधानाचार्य हो गये। 15 जनवरी 1965 से 15 दिसंबर 1965 तक उन्हें राजकीय इंटरमीडिएट कॉलेज अगस्त्यमुनि के प्रथम प्रधानाचार्य होने का गौरव प्राप्त हुआ।
अपनी लगन, इमानदारी और निष्ठा के बल पर वे पदोन्नत होकर जिला विद्यालय निरीक्षक उत्तरकाशी बने और फिर मण्डलीय उप शिक्षा निदेशक (DDR) बनकर पौड़ी पहुँचे।
उमेश चंद्र मलासी 23 जनवरी 79 से 1 अक्टूबर 80 तक डीडीआर के रूप में कार्यरत रहे। संयोगवश, उसी समय शासन ने शिक्षा विभाग में नियुक्तियों का अधिकार डीडीआर को दे दिया। उमेश चंद्र जी ने पूरी इमानदारी के साथ जहाँ भी पढ़ा-लिखा युवक मिला, सबको एलटी और लेक्चरर में नियुक्ति पत्र दे दिया। एक अनुमान के अनुसार शास्त्री जी ने 6 माह में ही करीब दो हजार युवकों को राजकीय हाई स्कूल और इंटरमीडिएट काॅलेजों में तदर्थ नियुक्तियां दी। वह बाद में स्थाई नियुक्त हुए। हैरत की बात यह है मलासी जी द्वारा नियुक्त अध्यापकों को लोग “मलासी पब्लिक सर्विस कमीशन” द्वारा नियुक्त अध्यापक कहते थे।
इसके पश्चात उन्हें शैक्षिक एवं तकनीकी प्रकोष्ठ लखनऊ में निदेशक बना दिया गया। जहाँ पदभार का निर्वहन करते हुए 55 वर्ष की उम्र में ही उनका असामयिक निधन हो गया। उनकी सादगी और ईमानदारी देखिये कि 19 दिसंबर 1980 जब उनकी मृत्यु हुई, उनके खाते में बचत के नाम पर हजार रु. से ही कम जमा थे।
उनकी मृत्यु के समय उनके पुत्र आलोक 16 वर्ष, शैलेश 14 वर्ष और प्रमोद 12 वर्ष की उम्र के थे। समय के थपेड़ों को सहते हुए यह बच्चे अपनी मेहनत के बल पर निरंतर आगे बढ़ते गये और उच्च शिक्षा प्राप्त कर विभिन्न विद्यालयों में अपनी योग्यता की धाक जमाये हुए हैं।।
उनका कहना है-
राजेंद्र सिंह बर्त्वाल, सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, बनियाडी़।
यह मेरा सौभाग्य है कि मैं भी “मलासी पब्लिक सर्विस कमीशन” में नियुक्त अध्यापक रहा हूँ। डीडीआर साहब सादगी पसंद जीवन यापन करते थे। कविताएं लिखना-पढ़ना उनका शौक था। “रुद्रनाथ वर्णन” कवितावली भी उन्होंने लिखी थी। निःस्वार्थ भाव से उन्होंने उस समय के युवाओं को नियुक्ति दी।
आज जब समाज में चारों ओर भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार, कमीशनखोरी जैसे माहौल को देख रहे हैं, ऐसे में डीडीआर साहब मलासी जी के कार्य स्वतः ही याद आ जाते हैं।
–चंद्रशेखर बेंजवाल, अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य, अगस्त्यमुनि।
मैं भी इसे अपना सौभाग्य समझता हूँ कि मुझे पहली बार अगस्त्यमुनि स्कूल में पढ़ाने का अवसर मिला, उसके प्रधानाचार्य उमेश चंद्र मलासी जी ही थे। वे सौम्य स्वभाव और हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी भाषा के विद्वान थे। वे आदर्श पुरुष और अनुकरणीय शिक्षक थे।
पदमसिंह गुसाईं ‘कमलेश’ वरिष्ठ साहित्यकार
(अवकाश प्राप्त प्रधानाचार्य)
मेरा सौभाग्य रहा कि मैं उमेश चंद्र मलासी शास्त्री जी का छात्र रहा हूँ। उन्होंने समय को अपने अनुकूल बनाया और प्रगति पथ पर आगे बढ़ते गये। अपनी लिखी कविताओं को वे स्कूल में आकर कक्षा में अवश्य सुनाते थे। उनकी कविता की कुछ लाइनें मुझे अभी भी याद हैं :-
समय के सभी साथ जीवन बदलते,
समय को बदलता हुआ तू चला-चल।।