आपदा प्रबंधन रूद्रप्रयाग का गैरजिम्मेदार रवैया, मॉकड्रिल के नाम पर जनता में दहशत

रूद्रप्रयाग। रूद्रप्रयाग में आपदा प्रबंधन का एक बार फिर गैर जिम्मेदारा रवैया सामने आया है मॉक ड्रिल के नाम न केवल सरकारी धन का दुरूपयोग किया जा रहा है बल्कि जनता के बीच भारी दहशत का महौल तैयार कर दिया जा रहा है। रूद्रप्रयाग के आपदा प्रबंधन अधिकारी नंदन रजवार ने आज एक ऐसी खबर फैलाई जिसने रूद्रप्रयाग मुख्यालय समेत केदारघाटी को खौफज़दा कर दिया।
आपदा प्रबंधन अधिकारी ने खबर फैलाई कि कुण्ड बैराज से पानी छोड़ने के बाद 8 स्थानीय लोगों के डूबे जाने से मौत हो गई। खुद केदारखण्ड एक्सप्रेस से आपदा प्रबंधन अधिकारी द्वारा बताया गया कि चारों शव नदी से निकाले गये जबकि 3 लापता हैं।
केदारनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर आपदा प्रबंधन द्वारा हूंटर का हुदंग, सायरन की आवाजें और आपदा जैसा मौहोल बनाकर लोगों में दहशत फैला दी। लोग चौतरफा चर्चा करने लगे कि क्या हुआ? लोगों में संशय, दहशत और भय का माहौल पैदा हो गया।
दरअसल आपदा प्रबंधन रूद्रप्रयाग द्वारा मॉकड्रिल के नाम ये यह दहशत फैलाई गई जबकि आपदा प्रबंधन विभाग के सभी कर्मचारियों के साथ ही पूरे सरकारी तंत्र को मॉकड्रिल की पहले से पूरी जानकारी थी। मौक ड्रिल का मतलब होता है आपदा से पूर्व आपदा तैयारियों का एक ऐसा अभ्यास जिसके बारे में किसी भी कर्मचारी को पता ना हो। सिस्टम की एक ऐसी तैयारी जिसकी जानकारी केवल एक दो लोगों को ही रहती है उसके बाद एक मनगढ़ंत आपदा लाई जाती है जिससे निपटने में सिस्टम कितना कारगर साबित होता है वह देखा जाता है, लेकिन रूद्रप्रयाग में भरी दोपहरी में आपदा प्रबंधन द्वारा ऐसी आपदा लाई गई जिसका होना सम्भव नहीं था। जबकि इस मॉक ड्रिल की जानकारी जानता को छोड़कर सबको पहले से पता थी।
यह भी सर्वाधित है कि जब वास्तविक आपदा आती है तो तो रूद्रप्रयाग का आपदा प्रबंधन का सबसे निष्क्रिय और सुस्त रवैया रहता है। पिछले वर्ष रूद्रप्रयाग के नगरकोटा में पुल निर्माण में सरिया जाले के नीचे दबे मजदूरों को 8 घंटे बाद निकाला गया जब उन्होंने दम तोड़ दिया थोडा। जबकि 6 माह पूर्व मुख्यालय में बद्रीनाथ मार्ग पर पेट्रोल पम्प से आगे एक व्यक्ति खाई में गिरा था जिसे निकालने में 4 घंटे से भी अधिक का समय लगा दिया था। जबकि महापंथ ग्लेशियर से एक मृत शरीर को का रेस्क्यू करने में एक सप्ताह का समय लगा था वह भी सैना की मदद से सम्भव हो पाया। जब भी असल आपदा आती है तब तब आपदा प्रबंधन विभाग फोटो खिंचवाने में अधिक मशगूल रहता है जबकि कार्य सबसे गैरजिम्मेदराना रहते हैं।
आज भी केवल और केवल सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया जा रहा और जनता में खौफ का वातावरण तैयार किया जा रहा है। देखना होगा आने वाले मानसून सत्र में आपदा प्रबंधन विभाग की केवल मनगढ़ंत आपदाओं में ही आगे रहता है या फिर वास्तविकता से निपटने में फुर्ती दिखाता है। दरअसल जिले में कई अधिकारी निरंकुश हो रखे हैं जो विभाग में नियम कायदो को धत्ता बताते हुए सरकारी पद और मशीनरी का जमकर दुरूपयोग कर रहे हैं लेकिन मजाल क्या कि कोई रोकने टोकने वाला हो।
उधर पूरे मामले पुलिस अधीक्षक से फोन पर वार्ता हुई तो उनके द्वारा बताया गया इसमें पुलिस का कोई भूमिका नहीं है, यह सब डीडीआरएफ का कार्यक्रम था।